Thursday, October 1, 2015

युवा देश का भविष्य है, युवा चाहे तो क्या नहीं कर सकता, लेकिन आज का युवा रोजगार की चाह में भटक गया है। व्हाइट कॉलर जॉब की चाह में वह कुछ भी करने को तैयार है, बस नौकरी चाहिए तो सरकारी, बाकी कुछ नहीं। ऐसा इसलिए कि सरकार में ज्यादा काम करने को तो होता नहीं और कुर्सी पर बैठकर टाइम निकालना है। यही कारण है कि आज बीए, एमए और पीएचडी पास युवा चपड़ासी लगने को तैयार हैं। स्थिति यह है कि आज हर कोई आराम से ही सब पाना चाहता है और देखादेखी युवाओं की अंधी दौड़ बस लगी है सरकारी नौकरी पाने के लिए।

नौकरी के पीछे न भागें खुद के बोस बने


सब जानते हैं कि सरकार में नौकरी के अवसर अब सीमित ही नहीं, बल्कि न के बराबर हो गए हैं। सरकारों ने भी कारपोरेट सेक्टर की तरह अब ठेकेदारी प्रथा को अपना लिया है। जब जरूरत नहीं तो निकाल दिया और जब जरूरत है बुला लिया। ऐसे में युवाओं को सरकारी नौकरी की तरफ नहीं झांकना चाहिए, क्योंकि आज सरकार में जो नौकरी दी जा रही है उनमें अधिकतर ऑउटसोर्सिंग पर ही हो रही है। यानी सरकारी कार्यालय में निजी कंपनी के कर्मचारी के रूप में आप काम करेंगे। ऐसे में आप सरकारी कर्मचारी नहीं होंगे। हर व्यक्ति को सरकारी या कारपोरेट सेक्टर में नौकरी मिले यह संभव नहीं है। लेकिन हर व्यक्ति को रोजगार मिले, यह संभव है।

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इसलिए आज युवा अगर अपनी पढ़ाई का सही इस्तेमाल करे तो वह खुद नौकरी की लाइन में लगने के बजाय अन्य युवाओं को रोजगार देने की स्थिति में हो सकता है। बस जरूरत है युवाओं को अपने जोश को सही रास्ते पर लगाने की। यानी जो पढ़ा है उसका सही रूप में इस्तेमाल किया जाए। पढ़ाई केवल मात्र सरकारी नौकरी लेने के लिए नहीं की जाती। पढ़ाई से युवाओं का बौद्धिक विकास होता है और इसका इस्तेमाल देश के निर्माण में होना चाहिए। आप यदि कृषि में ही मेहनत करें तो और कई लोगों को रोजगार दे सकते हैं। अपने कृषि उत्पादों की मार्केटिंग ही करेंगे तो सरकारी कर्मचारी से कई गुणा कमा सकते हैं, लेकिन जिम्मेदारी से बचने की जो सोच लेकर युवा सरकारी नौकर बनने को आतुर है वह सोच बदलनी होगी।

इंटरप्रेनयरशिप एक विकल्प

आज के समय में युवाओं के पास वैसे तो कई विकल्प हैं लेकिन उनमे इंटरप्रेनयरशिप एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। तकनीक में हुए विकास के चलते आज के समय में कोई भी काम करना मुश्किल नहीं रहा।  बस जरूरत स्पष्ट व सही सोच और जोश की है। युवाओं को नौकरी का विचार दिलो-दिमाग से निकालना होगा।
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आज बैंकिंग सेक्टर भी काफी लिबरल हो गया है और पीएम नरेंद्र मोदी की नई योजना में तो ऋण लेना आसान है। यदि बैंक आज भी आनाकानी करता है तो आप सीधे पीएम मोदी को इसके बारे में लिख सकते हैं और वहां से बाकी काम हो जाएगा। इसलिए अपनी सोच बदलो और फिर देखो, आप खुद को कहां खड़ा पाओगे।

स्टार्ट अप्स की कामयाबी

बीते कुछ सालों से स्टार्ट अप्स की कामयाबी ने यह साबित कर दिया है कि युवा इंटरप्रेनियर बन अपने आइडिया को इनिशियेट कर अपना कारोबार शुरू कर सकते हैं। इसके लिए न तो अधिक पैसे की जरूरत होती है और नहीं ही अधिक पढ़े लिखे होने की। बस आपके अंदर दूसरों से हटकर सोचना की कला होनी चाहिए। आज की इस डिजिटल दुनिया में सब संभव हो गया है कोई भी जानकारी जानने के इच्छुक हैं तो आप इंटरनेट पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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दुनिया भर में स्टार्टअप रैंकिंग में भारत पांचवे स्थान पर है और इकोनॉमिक ग्रोथ के चलते यहां हर साल 800 स्टार्टअप्स जन्म ले रहे हैं। ऐसे में फंडिंग माध्यमों तक आसान होती पहुंच ने युवाओं को स्टार्ट अप्स की ओर आकर्षित किया है। आईआईटी और आईआईएम के ग्रेजुएट्स लाखों का पैकेज छोड़ स्टार्ट अप्स से जुड़ रहे हैं। क्यों? आखिर उन्हें इसमें कुछ अच्छा लग रहा होगा ना। वरना लाखों का पैकेज छोड़कर क्यों इस दिशा में कदम बढ़ाएगा। किसी मजबूत स्टार्ट अप आइडिया को अब कामयाब बिजनेस में बदलना मुश्किल नहीं रह गया है। इसलिए आप को भी ऐसा ही कुछ करना होगा और फिर कामयाबी आपके कदमों में होगी, यह हमारा दृढ़ विश्वास है।

अब फ्लिपकार्ट का ही उदाहरण ले लीजिए, इसे जिस सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने 2007 में लॉंच किया था, वही कंपनी आज अपनी ऊंचाइयों को छू रही है। इस कंपनी को शुरू करने के लिए दोनों ने दस हजार रुपए की राशि लगाई थी। आज इस कंपनी का मार्केट में बोल-बाला है। हालही में फोर्ब्स की जारी लिस्ट में भी पहली बार इस ई-कॉमर्स कंपनी ने जगह पाई है।

पिछले कुछ वर्षों में स्टार्ट अप्स की कामयाबी से भी यह देखा जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति कड़ी मेहनत से जो भी काम करता है उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन इसके लिए युवाओं को कड़ी मेहनत के साथ-साथ उस क्षेत्र की गहन जानकारी होना जरूरी है। स्कूली जीवन से ही अपने रूचिपूर्ण विषय की अतिरिक्त जानकारी जुटानी चाहिए, ताकि, आने वाले समय में वह आपके काम आ सके।

नौकरी की चाह?

उत्तर प्रदेश का ही हाल देखो, वहां चपरासी के 368 पदों के लिए 23.25 लाख बेरोजगारों ने आवेदन किया। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बेरोजगारी की क्या स्थिति है। यही हाल अन्य राज्यों का भी है। आज स्थिति इतनी विकट हो गया है कि पीएचडी पास चपड़ासी बनने को लाचार है। यह लाचारी ही कही जाएगी, क्योंकि इतना पढ़ने के बाद हाथ में नौकरी नहीं है। हैरानी इस बात है कि यदि चपड़ासी ही लगना है तो इतनी पढ़ाई क्यों की। क्या पढ़ाई सिर्फ सरकारी नौकरी पाने के लिए की गई है।
   
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यदि पीएचडी धारक अपने लिए कोई रास्ता नहीं निकाल सकता है वह समाज को क्या दिशा देगा, यह सोचने का विषय है। कुछ पीएचडी धारकों से बात भी कई तो, उनकी मनोदशा ऐसी होती है कि वह शहर आकर घर नहीं लौट सकते। शहर में रहना है और इसके लिए चपड़ासी पद से भी समझौता करने से गुरेज नहीं करते। क्योंकि गांव वापस जाने में बहुत संकोच होता है। गांव जाएंगे तो लोग क्या कहेंगे वगैरा-वगैरा।

यहां सवाल पैदा होता है कि आखिर पढ़ाई होती क्यों है। क्या केवल मात्र सरकारी नौकरी पाने के लिए पढ़ा जाता है। जो लोग सरासर यह सोच रखते हैं, उनकी पढ़ाई में कहीं न कहीं कोई चूक हुई है। चाहे यह चूक व्यवस्था की हो या फिर सामाजिक ताने-बाने की। क्योंकि पीएचडी तक कर चुके लोग यदि खुद अपनी राह नहीं बना पाएंगे तो दूसरों को क्या राह दिखाएंगे। लेकिन ऐसे लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है। जरूरत है बस उस जज्बे की जो अनजान मार्ग पर चलकर लोगों को साथ चलाए। इसके लिए कुछ करने का जज्बा होना लाजिमी है।

यहां बात फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग की हो तो उचित रहेगा। जकरबर्ग उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो कुछ करने की तमन्ना रखते हैं। फ्लिपकार्ट का उदाहरण भी आपके सामने है। इसे खड़ा करने वाले सचिन बंसल और बिन्नी बंसल की कहानी भी युवाओ के लिए प्रेरणादायक है।

व्यवहारिक शिक्षा का अभाव

देश में खड़ी हो रही बेरोजगारों की फौज के लिए आज की शिक्षा व्यवस्था भी काफी हदतक जिम्मेदार है। शिक्षा का तानाबाना अब ऐसा होना चाहिए जो युवाओं को आत्मनिर्भर बनने को प्रेरित करे। आज पढ़ाई का मतलब सरकारी नौकरी है और इस सोच को बदलना होगा। सरकारी नौकरी यानी क्लर्क लगना और एक टेबल-कुर्सी हासिल करना। इससे आगे की सोच आज के अधिकतर युवाओं की है ही नहीं। लेकिन अब इस सोच से आगे निकलना होगा। यानी खुद कुछ करने की क्षमता को टटोलना होगा।

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देश के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के स्तर को बढ़ाना होगा और ग्राम स्तर पर ही इसे विस्तार देना होगा। तकनीकी शिक्षा जितनी जल्दी हो सके, उसे शुरू किया जाना चाहिए। देश की सरकार को इस दिशा के प्रति गंभीरता से सोचना होगा। क्योंकि बेरोजगारी आंकड़ा और न बढ़े, इसके लिए जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए जो भी आवश्यक कदम उठाने चाहिए, उन्हें उठाने में देर नहीं करनी चाहिए।

डिग्री लेने के बाद युवाओं को 2-4 साल तो नौकरी के लिए ही भटकना पड़ता है। ऊपर से जब कोई पूछता है कि क्या कर रहे हो तो शर्म से सिर झुक जाता है। आखिर जवाब दें भी तो कैसे पढ़ाई और ट्रेनिंग पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी अच्छी नौकरी नहीं।

दरअसल दोष युवाओं का नहीं बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था का है जिसके कारण बेरोजगारों की फौज खड़ी हो रही है। हमारे देश में अधिकतर शिक्षण संस्थानों में रोजगारपरक शिक्षा का अभाव होना इसका मुख्य कारण है। ऐसे में आज जरूरत तकनीकी शिक्षा की है ताकि युवा क्लर्की वाली शिक्षा की बजाय रोजगारपरक शिक्षा हासिल कर सके। इसके लिए देश के नीति-निर्धारकों को गंभीरता से विचार करना होगा और तय अवधि के भीतर ऐसी शिक्षा को लागू करना होगा, जिसमें हर युवक को रोजगार के साथ-साथ स्वरोजगार मिल सके। एक बार देश में निचली कक्षाओं में तकनीकी शिक्षा शुरू हो जाए, फिर देखिए, इस युवा देश का कमाल, क्योंकि फिर ग्रामीण स्तर पर भी रोजगार के मौके होंगे और वहां से युवाओं को शहरों की ओर पलायन नहीं होगा और यदि एक बार ऐसा हो गया तो भारत देश तरक्की की नई बुलंदियों पर होगा।

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