Tuesday, September 13, 2016

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने करीब तीन दशक पहले यह कहा था कि 'अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो वो पानी के लिए लड़ा जाएगा।' लेकिन इस विश्व युद्ध से पहले फिलहाल भारत में प्रदेश युद्ध जैसी स्थिति बन गई है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच पानी के बंटवारे को लेकर जिस तरह की स्थिति बनी हुई है इससे यह साफ जाहिर होता है कि तीसरा युद्ध पानी के लिए ही हो सकता है।

आपने कई शहरों में पानी के लिए सुबह-शाम के झगड़े तो देखें ही होंगे, पर इस बार यह झगड़ा दो राज्यों के बीच हो रहा है। यह झगड़ा अब खतरनाक रूप धारण कर चुका है। कर्नाटक और तमिलनाडु की जीवनरेखा मानी जाने वाली कावेरी नदी के जल को लेकर दोनों राज्यों में एक बार फिर विवाद गहरा गया है। दरअसल तमिलनाडु में इस साल कम बारिश होने के कारण पानी की जबरदस्त किल्लत है। कर्नाटक को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के लिए 12 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के निर्देश दिए थे। लेकिन इन निर्देशों से लोग आगबबुला हो गए और कर्नाटक के लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरोध में सड़कों पर उतर आए और पानी न छोड़ने के लिए 20 से ज्यादा बसों को फूंक दिया गया। वहीं दूसरी ओर चेन्नई में भी होटल पर पेट्रोल बम से हमले किए गए। दोनों राज्यों में हो रही इस तरह की हिंसक घटनाओं ने पानी के लिए होने वाले तीसरे विश्व युद्ध की आग सुलगा दी है। अब स्थिति यह हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री तक को इस मुद्दे पर लोगों से संवेदनशीलता की अपील करनी पड़ी।




यह स्थिति तब बनी है जब देश के कुछ हिस्सों में मूसलाधार बारिश हुई है। कई राज्यों में तो बाढ़ भी आ गई। अब जब ऐसे समय में भी पानी की कमी हो रही है तो फिर यह चिंतन करने वाली बात है कि जब बारिश नहीं होगी तो वह स्थिति कितनी भयावह होगी।

यह विवाद कोई नया नहीं है, दशकों से चला आ रहा यह विवाद अभी तक सुलझ नहीं सका है। ये सारा मुद्दा ही पानी को लेकर है लेकिन तब भी लोग बसों को आग लगा रहे हैं, अर भाई बसों की इस आग को बुझाने के लिए भी तो पानी की जरूरत पड़ेगी। यह क्यों नहीं समझते। अगर इसी तरह पानी को लेकर आपस में लड़तेमरते रहे तो कोई ताज्जुब नहीं कि पानी को लेकर होने वाले तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हमारे देश से हो। पानी की कमी एक वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है। दुनिया का हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। लेकिन इस तरह की झड़प हमारे यहाँ ज्यादा दिखती हैं। कोई समाधान पर ध्यान नहीं दे रहा, बावजूद इसके हम पानी बचाने के बजाये एक दुसरे का खून बहाने में जुटे हैं।

जल की तुलना जीवन से की गई है इसलिए कहा गया है 'जल ही जीवन है'। पानी के बिना हमारा जीवित रहना असंभव है, बिना खाए इन्सान कुछ दिनों तक तो जिंदा रह सकता है, मगर पानी के बिना कुछ दिन भी जीवित नहीं रह जा सकता। आधुनिकता के इस दौर में भी गंदा पानी पीना मजबूरी है। भले ही इससे जल जनित रोग हो जाएं और जान पर बन आए लेकिन प्यास तो बुझानी ही होगी।

धरती पर सबसे ज्यादा पानी होने की वजह से इसे ब्लू प्लैनेट कहा जाता है। धरती पर वैसे तो पानी की कमी नहीं है, पर जब स्वच्छ जल की बात आती है तो कमी महसूस हो जाती है। पृथ्वी पर करीब 71 प्रतिशत हिस्से पर पानी है और करीब 29 फीसदी हिस्से पर भूमि। परंतु पृथ्वी पर उपलब्ध पानी का करीब 97 प्रतिशत खारा है, जिसे की सिंचाई और पीने के लिए भी प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। केवल 3 फीसदी पानी ही पानी योग्य है, उसमें भी 2 फीसदी पानी ग्लेशियरों या पहाड़ों में जमा है।

अब सबसे जरूरी है कि बारिश के पानी को सहेजा जाए जो कि ज्यादा मुश्किल नहीं है। छोटे-छोटे प्रयासों से यह संभव है। जैसे घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए, सिंचाई के लिए ड्रिप एरिगेशन का प्रयोग किया जाए, पानी को भूगर्भ तक पहुंचाने के लिए गहरे गड्ढे बनाए जाए।  छोटे-छोटे तालाब, बांध, नाले, भी जनभागीदारी से हर मोहल्ले, गांव और कस्बों में तैयार किए जा सकते हैं, जो भूर्गभीय जल संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। छोटी-छोटी बातों पर भी यदि ध्यान दें तो भी हम पानी की खपत को कम कर सकेंगे।

स्वच्छ पेयजल निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है और इसके लिए सरकार का मुंह देखना खुद के साथ बेमानी होगी। हर किसी को इसके लिए अपने स्तर पर एक-एक आहुति देनी होगी, तभी हम पानी के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की भयावहता को न केवल टाल पाएंगे, बल्कि जल ही जीवन का नारा भी सार्थक कर पाएंगे।

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