Thursday, April 7, 2016

शिमला: देश में भले ही अभी तक अच्छे दिन आने के दावों की हवा निकल चुकी है पर हिमाचल में विधायकों और मंत्रियों के अच्छे अब दूर नहीं है। आज विधानसभा सत्र की कार्यवाही के अंतिम दिन सदन में विधायकों के वेतन एवं भत्ते संबंधी संशोधन विधेयक को ध्वनी मत से पारित किया गया। नए विधेयक के अनुसार वेतन और भत्तों में दोगुना वृद्धि की गई है।

जनता के मुद्दों पर जहां हमेशा शोर-शराबा, हंगामा और विपक्ष का वॉकआउट होता है वहां आज जब अपनी जेब गर्म करने की बारी आई तो सभी ने खामोशी से एक सुर में वेतन एवं भत्ते संबंधी संशोधन विधेयक को ध्वनी मत से पारित करवा दिया। इस मुद्दे पर न तो किसी ने चर्चा की मांग की और न ही विचार करने की बात कही, बिना शोर-शराबा किए 15 मिनट में ही विधेयक को पारित किया गया।

वर्तमान में प्रत्येक विधायक को मासिक 1,32,000 रुपये वेतन और भत्ते मिलते हैं, अब इस धनराशि को करीब 2.30 लाख रुपये मासिक किया जा जाएगा। इसी तरह पूर्व विधायकों की मासिक पेंशन भी 22,000 से बढ़कर 50,000 रुपये हो जाएगी।

सरकार कर्जे में मंत्री मजे में

प्रदेश सरकार पर चाहे कर्ज का जीतना भी बोझ पड़े लेकिन माननीयों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अभी हालही में विधानसभा में सामने रखे गए आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि प्रदेश सरकार ने बीते तीन साल में 11044 करोड़ रुपए का नया कर्ज लिया है।


कर्ज के द्वारा लिये गए इस धन को जनता के विकास के बजाए नेताओं के ऐशोआराम पर पानी तरह बहाया जा रहा है। जो पैसा विकास कार्यों में लगना चाहिए था उसे माननीयों की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए खर्च किया जा रहा है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि माननीयों का वेतन बढ़ाया नहीं जाना चाहिए। वेतन बढ़ाया जाना चाहिए पर एकाएक वेतन और भत्तों में 100 फीसदी वृद्धि करना कहां तक उचित है? वर्ष 2013 में माननीयों के वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी की गई थी, उसके बाद 2015 में भी भत्तों में कुछ बढ़ोतरी की थी। और अब वेतन और भत्तों में दोगुनी वृद्धि करना कहां तक उचित है?

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