Tuesday, April 21, 2015

कहते हैं सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते, लेकिन इसके लिए सुबह भूलना जरूरी है और शाम को घर आना भी। मगर यहां माजरा जरा थोड़ा अलग है, वो शाम को घर तो लौटा, मगर सुबह भूला नहीं था। उसे याद था कि उसकी जमीन खिसक रही है, वो जब शाम को लौटा तब भी उसे याद था कि जमीन का खिसकना जारी है मगर इस बार उसके पास समाधान था। सियासी जमीन को बचाने के पेनकिलर बनीं किसानों की जमीन लेकिन उनके इस एक्शन में जरा टाइम लग गया।

Image Source: www.indiatimes.com


इस सियासी ब्रोक को कई दिग्गजों ने कई नाम दिए, कुछ ने इसे अज्ञातवास कहा, कुछ ने एकांतवास, कुछ ने चिंतन कहा तो कुछ ने सियासी ब्रोक। मगर यह एकांतवास जितना लंबा था कम-बैक उतना धमाकेदार नहीं हो पाया। होगा भी कैसे जिस जमीन को पर्दा बनाकर वो अपने रीलॉन्च का ट्रेलर रिलीज कर रहे थे, उस जमीन का किसान इतना नासमझ थोड़े ही है। दरअसल मामला थोड़ा पेचीदा है जिस तरह किसानों की जमीन पर अनाज उगता है। उसी तरह सियासत की जमीन पर नेता उगते हैं लेकिन यहां भी थोड़ा ट्विस्ट है। किसान की जब फसल खराब होती है तो वो आत्महत्या कर लेता है लेकिन नेता का जब टाइम खराब हो तो वो अज्ञातवास पर चला जाता है।

किसान तो आत्महत्या कर के वापस नहीं लौटता लेकिन अज्ञातवास वाले अक्सर वापस लौटते हैं और उनकी इस घर वापसी को कहा जाता है रीलॉन्चिंग। वैसे किसानों की जमीन पर सियासत की रोटियां पकाना अज्ञातवास से लौटने का पहला स्टेप बन गया है। लेकिन जनाब ये किसान सन् 47 वाला किसान नहीं है ये किसान जरा थोड़ा समझदार है, और सियासी गुणा भाग तो आज का किसान बखूबी समझता है, उसे पता है कि इस रीलॉन्च की पूरी स्टारकास्ट के कार्यकाल में ही बहुत से किसानों ने दुनिया को अलविदा कहा था और उसी स्टारकास्ट का हीरो रीलॉन्च के बहाने किसानों के फिल्मी परदे पर खुद को रीलॉन्च कर रहा है। ये बात पचाना तो जरा किसानों के भी बस का नहीं लग रहा। ऐसे में आम आदमी इस फैक्ट को कैसे समझ सकता है लेकिन जो भी कहें रीलॉन्च की धमाकेदार एंट्री के बहाने ही सही हमारी राजनीति के गायब चल रहे नायक के दर्शन तो हुए..............

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Dharm Prakash

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